गणपति वंदना भजन
सन्त श्री डूंगरपुरी जी की वाणी बर्तन जोये वस्तु वोरिये भजन lyrics
बर्तन जोय ने वस्तु वोरीये ।
ज्यारे मांई अवगुण न आवे, संदेशो न आवे नाथ जी।।टेर।।
(1) पहला ऊपाई दाता धरती, पाछे पवना सु पाणी।
पहली नाम गुणेश रा, सिद्धि सिद्धि आगल वाणी।।
(2) काचे घड़े नीर ना ठहरे, ना ठहरे कागद पारा।
बगुला मोतीड़ा ने क्या करे, मोती हंसलो रा प्यारा।।
(3) आन्धलो आरसी ने क्या करे, क्या करे मूरख माला।
गाफिल तस्बीरा ने क्या करे, जण घट घोर अन्धेरा।।
(4) बिना दीपक रा देवल कैसा, कैसा तराटी ने ताला।
बिना रेहणी रा साधु कैसा, ज्यारे भांई नीर भरीया खारा।।
(5) बिना पुरजन कैसी मावड़ी, किस विध आवेला पोना।
बाबो डुगरपुरी बोलीया, सन्तो सही कर लेणा।।
डूंगरपुरी जी महाराज द्वारा रचित यह बर्तन जोये वस्तु वोरिये भजन lyrics गणपति वंदना पर आधारित है इस भजन के माध्यम से डूंगरपुरी जी महाराज ने हमें बताया है कि शिक्षा ऐसे व्यक्ति को देनी चाहिए जो शिक्षा प्राप्त करने का अधिकारी हो जो शिक्षा प्राप्त करने का अधिकारी नहीं हो उसको उपदेश नहीं देनी चाहिए क्योंकि उपदेश देने से मूर्ख लोग उल्टा कुपित होते हैं जिस प्रकार सर्प को दूध पिलाने से सिर्फ विष ही बनता है उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति को उपदेश देने से केवल हानि ही होती है वैसे तो इस भजन का अर्थ बहुत ही गहरा है।
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