बगुला और केकड़े की कहानी

बगुला और केकड़े की कहानी

एक बूढ़ा बगुला बहुत कमजोर हो गया था। कमजोरी के कारण वह मछलियों का शिकार करने में असर्मथ था। इस समस्या से निदान पाने के लिए उसने एक युक्ति निकाली। वह तालाब के पास जाकर जोर-जोर से रोने लगा। उसे ऐसे रोते देख कर केकड़े ने उससे पूछा, “आप रो क्यों रहे हैं, और आप मछलियों का शिकार क्यों नहीं कर रहे?” बगुला और केकड़े की कहानी

बगुला बोला, “मैंने आमरण उपवास रखा है। “

केकड़े ने फिर पूछा, “तो आप रो क्यों रहे हैं। “

इसपर बगुला बोला, “मैं एक योगी को सुनकर आ रहा हूं। उसने भविष्यवाणी की है कि यहां सूखा पड़ेगा और अगले बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसेगा। सभी मछलियां और अन्य जीव मर जाएंगे। यह सुनकर मेरा मन दुखी हो गया।’ बगुला और केकड़े की कहानी

यह सुनते ही केकड़ा चौंक गया और उसने जाकर सभी मछलियों को आगाह किया। केकड़े की बात सुनकर सभी बगुले के पास गए और उससे सलाह मांगी। बगुले ने बड़ी सहानभूति जताते हुए कहा, “यहां से कुछ दूरी पर एक बहुत बड़ा तालाब है। उसमें इतना पानी है कि वह बरसों तक नहीं सूख सकता। अगर तुम लोग कहो तो मैं तुम सबको एक-एक करके वहां लेकर जा सकता हूं।”

सभी इस प्रस्ताव को मान गए। बगुला रोज एक मछली को दूसरे तालाब में ले जाने का दिखावा करता, पर थोड़ी दूर जाकर, उन्हें एक चट्टान पर पटक कर मार देता था। इस तरह बिना शिकार किए उसे रोज खाना मिल जाता। एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा, “आप मुझे कब दूसरे तालाब में ले जाओगे?” बगुला और केकड़े की कहानी

बगुले ने सोचा, “मछलियों को खा कर ऊब गया हूं। क्यों न स्वाद बदलने के लिए आज इस केकड़े को खाऊं!”

बगुला केकड़े को अपनी गर्दन पर बैठाकर दूसरे तालाब में ले जाने का नाटक करने लगा था। तभी केकड़े को एक चट्टान पर मछलियों की हड्डियां दिखीं। उसे बगुले का सारा खेल समझ आ गया। बगुला और केकड़े की कहानी

उसने जल्दी से बगुले की गर्दन अपने पंजों से दबानी शुरू कर दी और तब तक दबाता रहा जब तक बगुला मर नहीं गया। वापिस तालाब आकर केकड़े ने सबको दुष्ट बगुले के षड्यंत्र के बारे में बताया। बगुला और केकड़े की कहानी

नैतिक शिक्षा :-

कभी किसी पर अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए। 

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