लोक भजन
भक्त माधुदास जी का भजन मुसाफिर तू क्यो भटके भजन lyrics
मुसाफिर तू क्यूं भटके रे
म्हारे ईश्वर रे भक्ता रो काम कदेयन अटके रे।।टेर।।
कारीगर पत्थर घडे, पत्थर में पायो छेद।
छेद माय ने कीड़ी निकली जीवण री नहीं रे उम्मीद।
मुखमें दाणो लटके रे म्हारे ईश्वर रे भक्ता रो….
कारीगर किरतार ने रे करवा लागो याद।
दौड़ बुढापो आवसी रे कदियन कीना याद।।
भरोसे बैठो डटके रे म्हारे ईश्वर रे भक्ता रो…
जंगल में मंगल भया रे चरू दिया जमी दोट।
कारीगर के किरतार ने बांध इणा री पोट।।
म्हाने क्यूं नहीं पटके रे म्हारे ईश्वर रे भक्ता रो….
चोरों ने चर्चा सुणी रे लीना ढक्ण उठाया।
करम हींण तो कांई करे धन रा वे गीया वियाल।।
बात चोरों ने खटके रे म्हारे ईश्वर रे भक्ता रो..
चोर चढ़िया घर ऊपरे रे, लीना छप्पर उठाय।
माधु के धन देवे दाता, ले भाई छप्पर फाड़।।
कारीगर गिणले झटके रे म्हारे ईश्वर रे भक्ता रो…
यह भजन माधव दास जी महाराज द्वारा रचित पूर्ण परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखने से हर कार्य संभव है एक दिन मधु दास जी महाराज जो शिल्प कला के कार्यक्रम थे उन्होंने देखा कि पत्थर के अंदर से एक चींटी निकली जिसके मुख में अंदर एक दाना लटक रहा है तब माधव दास जी महाराज ने परमात्मा की लीला का धन्यवाद किया कि ही मालिक आप कितने समर्थ है कि एक पत्थर के अंदर जो चिट्ठी निकली है उसकी मुख में भी आपने दाना दे दिया है तो अगर आप पर कोई विश्वास रख कर बैठ जाए तो क्या आप उसे नहीं देंगे तब माधव दास जी महाराज घर जा कर बैठ जाते हैं फिर परमात्मा देखो उनको कैसे धन देते हैं वह सभी इस भजन के माध्यम से बताया है विश्वास रखने वालों की परमात्मा किस तरह से मदद करते हैं।
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