राजारामजी की आरती
ओम जय गुरूदेव हरे, प्रभु जयगुरूदेव हरे ।।
अधम उद्धारण कारण, भक्ति बढावन कारण संतन रूप धरे ॥
श्वेत वस्त्र शोभित, गल बिच फूल माला ।।
प्रभु क गुरूजी को रूप निरखता, शीश चन्द्र भाला ।।
ओम श्री राजारामजी की आरती
कर बिच सिवरण, शोभा अति भारी ॥
प्रभु की दर्शन से सुख आवै, कष्ट मिटै तन का | ओम
केशर चंदन पुष्प चढे है कपूर बाती ॥
प्रभु को गुरूजी की पूजा करजो, प्राणी दिन राती ॥
ओम श्री राजारामजी की आरती
चरण चरणामृत लेकर, नित उठ पान करे ।।
प्रभु को तन निर्मल हो जावै, पाप मिटे मन का ।। ओम
गुरू महिमा की वर्णना, ऋषि मुनि सब गावे ॥
प्रभु को वर्णन सके नहीं शारदा, चरणों में चितलवे ।।
राजारामजी की आरती, जो कोई नर गावे ॥
प्रभुको ज्योरे सुख संपति घर आवे, कष्ट मिटै भव का। ओम